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    इतिहास

    उत्तराखण्ड राज्य में प्रत्येक जिले में जिला न्यायालय और कुछ तहसील मुख्यालयों में वाह्य न्यायालय सरकार द्वारा उच्च न्यायालय के परामर्श से, मामलों की संख्या, स्थान की स्थलाकृति और जिले में जनसंख्या वितरण को ध्यान में रखते हुए स्थापित किये जाते हैं। जिला स्तर पर न्यायालयों की त्रिस्तरीय प्रणालियॉ कार्यरत् हैं। ये जिला अदालतें विभिन्न स्तरों पर राज्य के उच्च न्यायालय के प्रशासनिक और पर्यवेक्षण नियंत्रण के तहत उत्तराखण्ड में न्याय करती हैं। प्रत्येक जिले में सर्वोच्च न्यायालय जिला एवं सत्र न्यायाधीश का होता है। यह सिविल क्षेत्राधिकार का प्रमुख न्यायालय है, जो राज्य के अन्य सिविल न्यायालयों की तरह, मुख्य रूप से बंगाल, आगरा और असम सिविल न्याायालय अधिनियम, 1887 से सिविल मामलों में अपनी अधिकारिता प्राप्त करता है। यह सत्र न्यायालय भी है और सत्र मामलों का विचारण करता है। उत्तराखण्ड के कुछ जिलों में कार्यभार के आधार पर जिला एवं सत्र न्यायाधीश के न्यायालय के अतिरिक्त अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीशों के न्यायालय हैं। न्यायालय जिला एवं सत्र न्यायाधीश और अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश के न्यायालयों की अधिकारिता समान है। ये न्यायालय जिले में उत्पन्न होने वाले सिविल और दण्ड मामलों में मूल और अपीलीय अधिकारिता का प्रयोग करते हैं। दण्ड मामलों में अधिकारिता मुख्यतः दण्ड प्रक्रिया संहिता से प्राप्त होती है। यह संहिता सत्र न्यायालय के द्वारा दी जा सकने वाली अधिकतम सजा निर्धारित करती है। जो वर्तमान में दण्ड संहिता, 1973 की धारा 366 के तहत उच्च न्यायालय की पुष्टि के अधीन मृत्युदण्ड है। जिला न्यायाधीश मोटरयान दुर्घटना के मामलों को देखने वाले मोटरयान दुर्घटना प्रतिकर अधिकरण का पीठासीन अधिकारी भी होता है। इसके अलावा कुछ दाण्डिक, आपराधिक या सिविल मामलों को जिला न्यायाधीश से निम्नतर न्यायालय द्वारा नहीं चलाया जा सकता है, यदि विशेष अधिनियम इस आशय का प्रावधान करता है। यह ऐसे मामलों में जिला न्यायाधीश को मूल अधिकारिता प्राप्त होती है। हालॉकि, प्रत्येक जिले में, जिला एवं सत्र न्यायाधीश का सभी न्यायाधीशों/न्यायिक मजिस्ट्रेटों पर पर्यवेक्षण और प्रशासनिक नियंत्रण होता है, जिसमें उनके बीच कार्य का बटवारा भी सम्मिलित है। जिले का प्रधान न्यायाधीश होने के नाते, जिला एवं सत्र न्यायाधीश को जिले में न्यायपालिका के विकास के लिए आवंटित राज्य निधियों का प्रबंधन करने की शक्ति भी प्राप्त है। उत्तराखण्ड के प्रत्येक जिले में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी के न्यायालय कार्यरत् हैं। वर्तमान में कुछ जिलों में कार्यभार के आधार पर अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट एवं अपर न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय भी कार्यरत हैं। जिला नैनीताल में वर्तमान में रेलवे मजिस्ट्रेट की एक अदालत भी कार्यरत है। दाण्डिक मामलों में न्यायालय की अधिकारिता दण्ड प्रक्रिया संहिता से प्राप्त होती है और यह न्यायालय संहिता के द्वारा निर्धारित सजा भी दे सकती है। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, जिला एवं सत्र न्यायाधीश के अधीनस्थ होता है और प्रत्येक अन्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, जिला एवं सत्र न्यायाधीश के सामान्य नियंत्रण के अधीन मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के अधीन होता है। मुख्य न्यायिक मजिस्टेªट, जिला एवं सत्र न्यायाधीश के परामर्श से अपने अधीनस्थ न्यायिक मजिस्ट्रेट के बीच कार्य का वितरण करता है। इन न्यायालयों के अलावा, उत्तराखण्ड के प्रत्येक जिले में जिला और सत्र न्यायाधीश के अधीन कई अन्य न्यायालय जिला मुख्यालय या वाह्य तहसील में स्थापित होते हैं। इन अधीनस्थ न्यायालयों में आमतौर पर सिविल मामलों की सुनवाई के लिए सिविल जज(सीनियर डिवीजन), सिविल जज(जूनियर डिवीजन) के न्यायालय होते हैं। सिविल जज(सीनियर डिवीजन) की आर्थिक अधिकारिता असीमित है और सिविल जज(जूनियर डिवीजन) का आर्थिक क्षेत्राधिकार वर्तमान में रूपये तीन लाख तक है। कार्यभार के अनुसार कुछ जिलों में अपर सिविल जज (सीनियर डिवीजन), अपर सिविल जज (जूनियर डिवीजन) के अतिरिक्त न्यायालय भी हैं। कुटुम्ब न्यायालय देहरादून, हरिद्वार, पौड़ी, नैनीताल और उधम सिंह नगर जिलों में स्थापित हैं। इन न्यायालयों में उच्चतर न्यायिक सेवा संवर्ग के अधिकारी पीठासीन होते हैं। राज्य में देहरादून, हरिद्वार, उधम सिंह नगर और नैनीताल जिलों में श्रम न्यायालय और हल्द्वानी में एक श्रम न्यायालय-सह-औद्योगिक न्यायाधिकरण स्थापित है। उपभोक्ताओं और किशोरों के मामलों से निपटने के लिए प्रत्येक जिले में क्रमशः एक उपभोक्ता फोरम और किशोर बोर्ड स्थापित हैं। राज्य उपभोक्ता निवारण आयोग देहरादून में स्थापित है। इन न्यायालयों के अतिरिक्त राज्य में परिवहन अपीलीय न्यायाधिकरण, वाणिज्य कर अधिकरण, सहकारी न्यायाधिकरण, लोक सेवा अधिकरण भी स्थापित हैं। जरूरतमंद लोगों को कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए, प्रत्येक जिले में जिला विधिक सेवा प्राधिकरण भी जिला न्यायाधीश की अध्यक्षता में कार्य कर रहा है और राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण विधिक साक्षरता एवं विधिक सहायता हेतु उच्च न्यायालय परिसर नैनीताल में स्थापित है।